पुस्तक समीक्षा- जीवन वीणा (काव्य संग्रह)
लेखक:- अनीता श्रीवास्तव
समीक्षक:-राजीव नामदेव राना लिधौरी’ (टीकमगढ़) प्रकाशन वर्षः- सन् 2019 मूल्यः-150रु. पेज-184
प्रकाशन-अंजुमन प्रकाशन,प्रयागराज(उ.प्र.) 21100
अनीता श्रीवास्तव जी बहुमुखी प्रतिभा की धनी है। शिक्षण कार्य करने के साथ-साथ साहित्य लेखन में भी रुचि रखती हैं। उनका काव्य संग्रह ‘जीवन वीणा’ समीक्षार्थ प्राप्त हुआ है जो कि अंजुमन प्रकाशन प्रयागराज उ.प्र. से प्रकाशित होकर आया है। अपने 184 पृष्ठों के आकर में ढ़ेर सारी कविताओं को अपने में समेटे है। जिसको लेखिका ने चार प्रमुख भागों में बाँटा हंै। भाग-1 में 77 कविताएँ है,भाग-2 में 46 गीत है, भाग-3 में 15 बालगीत है,एवं भाग-4 में क्षणिकाएँ प्रकाशित की गयी हैं। यह इनका प्रथम प्रयास है इसलिए अनीता जी ने एक ही संग्रह में सब कुछ कविता गीत ,बालगीत, क्षणिकाएँ, शेर मुक्तक आदि सभी विधा की रचनाओ को पेश किया है। यदि इस संग्रह को केवल एक ही विधा विशेष लेकर प्रकाशित करतीं तो इसका महत्व और अधिक बढ़ जाता। रचनाएँ बढिया लिखी गयी हैं। भूमिका वरिष्ठ लेखक श्री प्रभुदयाल मिश्र जी ने लिखी है तो सम्मति श्री संतोष सोनकिया नवरस’जी ने लिखी है।
इस संगह में मुझे जो कविताएँ बहुत अच्छी लगी उनके बारे में संक्षिप्त में लिख रहा हूँ।
काव्य संग्रह के प्रारंभ में ‘वंदना’ करती हुई वे कहती हैं -‘तेरी शक्ति से जीवन संवरता रहे...। दीप जलता रहे दीप जलता रहे...........।’
‘पहचान‘ रचना में लिखतीं हैं- ‘जब तुमने मुझे पहचाना ही नहीं/ मेरे होने का क्या अर्थ/ मैं रहूँ भी तो न रही सी।’
‘हिंदी दिवस’ में वे हिंदी की दशा को उजागर करती हुई लिखती हैं- जो ओरों के साथ करते हैं, मातृभाषा के साथ भी कर रहे है। हिंदी दिवस और पखबाड़ा मनाकर उसे भी छल रहे है।’’ इस कविता में उन्होंने हिन्दी के शब्दों को कैसे लोग भूलकर अंग्रेजी का प्रयोग कर रहे है उस पर व्यंग्य किया है।
‘भूख’ कविता में यर्थाथ का चित्रण करती है- ‘खाली पेट आदती/भरी दूनिया की पीड़ा है/उसकी भूख जख्म है इंसानी दुनिया की देह पर/ तो फिर देते क्यों नहीं उसे/ उसके हिस्से की रोटी/ जबकि दुनिया में बराबर-बराबर है/ पेट की भूख।
‘‘देह’’ चार पंक्तियों में ही बहुत कुछ बयां करती हैं- सुख के दिन थे तो पत्थर बनकर जिया। जीवन रूपी अमृत को पानी समझकर पिया। जब दुखों की हुई बारिश और गला/मिट्टी का बना है ये तब पता चला।।
‘किसान की विधवा’ कहानी किसानों की हकीकत को व्यक्त करती एक बेहतरीन रचना है-
मर गया पेड़ पर लटककर/मौत रह गई मुझमें अटकर/दुनिया में हल्ला है अन्ना दाता मर रहा है/मर तो मैं रही हूँ/ हर साँस में सौ बार/ चुपचाप।।
‘अस्पताल में मासूमों की मौत’ एक सत्य घटना पर आधारित कविता है- सावधान! जो आॅक्सीजन जा नहीं सकी थी/मासूमों के फेफड़ों में/घूम रही है वायुमंडल में/ कुपित दुर्वासा की तरह श्रापित जल लिए कमंडल में वह आॅक्सीजन।।
‘भाई’ भाई-बहिन के प्रेम को दर्शाती मार्मिक कविता है- मेरा भी ले अपना भी रख/भाई तू हिस्सा मत दे प्रेम बनाए रख।।
‘जीवन किरण’ इस संग्रह की शीर्षक रचना है- माँ तुम इतना क्यों रोती हो/मेरे सर आँचल फैलाकर। तुम मेरे सपने में आकर या फिर मुझे अकेला पाकर।।
‘मलेरिया’ माँ पर लिखीं अच्छी कविता है- तुमने जीवन की प्रयोगशाला में/अनुभव की सूक्ष्मदर्शी से जाँच लिया होगा।
‘अरमान’ कविता में भावनाओं की अभिव्यक्ति देखे-असामान से नफ़रत बरसी/आग लगी है हर बस्ती में/ अरमानों की गठरी लादे/रहने जाएँ किस बस्ती में।।
‘आतंकवाद’ पर चोट करती सटीक रचना- खुशी बेचते हैं ये ग़म बेचते हैं। लेाकर दुकानें धरम बेचते हैं।
‘द्विपदी’ में लेखिका बता रही है कि कविता का जन्म कैसे होता है- राम कृपा से जन्मी कविता, पुलकित होते छंद। नाचा करते कवि के मन में, मुखड़ा हो या बंद।।
श्रृंगार रस ‘प्यार तुम्हारा’ रचना देखे- दिन के जैसा है न चाँदनी रात जैसा है। प्यार तुम्हारा इक सिंदूरी शाम जैसा है।
‘छुप तो जा रे चाँद’ कविता में वे लिखती हैं- ‘छुप तो जा रे चाँद’ जागती है ज़िन्दगी सेा गया इंसान।
‘लड़कियाँ’,बेटियाँं पर केन्द्रित अनीता जी ने अनेक कविताएँ लिखी हंै। वे लिखती हैं- उम्रभर महकता रहता ख़्वाब होती है, लड़कियाँ गुलाब होती है।
बाल कविताएँ भाग में अनके बाल कविताएँ अच्छी हैं- ‘चलो स्कूल’ एक प्रेरणादयक है। तो ‘अम्मा बोल, अम्मा बोल’ क्यांे है रोटी गोल बच्चों में जिज्ञासा पैदा करती है। बोलो चंदा मामा, पेड प्रणाम, गुड़िया शादी, चित्रकारी, चिड़िया रानी, बूंद प्रश्न अच्छी बाल रचनाएँ है।
क्षणिका भाग-4 में शेर, कता, मुक्तक और क्षणिकाएँ है मुझे कुछ बेहतरीन लगे हंै। यथा-
कोई नहीं समझ पाया कि पंख कहाँ से जुड़ जाते है।
यही पड़ा रह जाएगा पिंजर प्राण पखेरू उड़ जाते है।
मुझे किसी बात का ग़म नहीं। ये कहना भी कम नहीं।
झूठ और फरेब बरसा गए। बादल भी आज के चलन में आ गए।
कुल मिलाकर अनीता जी का ‘जीवन वीणा’ काव्य संग्रह प्रथम प्रयास है जो कि सराहनीय है। कविताएँ भाव गत धरातल पर अच्छी बन पड़ी है। उनके विचारों की अभिव्यक्ति बढ़िया है। यह काव्य संग्रह थोड़ा बड़ा जरूर है लेकिन पढ़नीय है क्योंकि इसमें पाठक को षटरस का आनंद प्राप्त होगा।
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-राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
संपादक ‘आकांक्षा’ पत्रिका
अध्यक्ष-म.प्र लेखक संघ,टीकमगढ़
अध्यक्ष-वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
जिला संयोजक-अ.भा.बुन्देलखण्ड साहित्य एवं संस्कृति परिषद्
शिवनगर कालौनी,टीकमगढ़ (म.प्र.)
पिन-472001 मोबाइल-9893520965
E Mail- ranalidhori@gmail.com
1 टिप्पणी:
हार्दिक धन्यवाद राजीव जी ।आपने पुस्तक को आद्योपांत पढ़ा एवम अपनी राय जाहिर की जिससे मुझे आगे के लिए मार्गगदर्शन प्राप्त हुआ ।बहुत आभार🙏
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