Rajeev Namdeo Rana lidhorI

गुरुवार, 23 जुलाई 2020

Bundelakhan ki Danghe By Rajeev Namdeo 'Rana Lidhori'

                           बुन्देलखण्ड और डाँगे’’:-
    संपादक -राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
प्रकाशन -24-7-2020
जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
प्रकाशक-मप्र लेखक संघ टीकमगढ़ (मप्र)
© कापीराइट- राजीव नामदेव राना लिधौरी, टीकमगढ़
मोबाइल- 9893520965
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1- बुन्देलखण्ड में कम होत डाँगे’’:-
                    -राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’’ 

हमाओं बुन्देलखण्ड मध्य भारत कौ एक भौतई पुरानौ क्षेत्र है ईकौ पुरानो नाव ‘जेजाक भुक्ति’ हतो। इकौं विस्तार म.प्र.उर उ.प्र. में है। अबै के शोधन के आधार पै ईकी सीमाऔ कौ एक भौतिक क्षेत्र घोषित करो गओ है जीके अनुसार इकी सीमाएँ ई प्रकार सें है- वह क्षेत्र जो उत्तर में यमुना, दक्षिण में विंध्य प्लेटो की श्रेणियाँ, उत्तर-पश्चम में चंबल उर दक्षिण-पूर्व में पन्ना-अजयगढ़ श्रेणियों से धिरौ भय है। ईमैं उ.प्र. के जालौन, झाँसी, ललितपुर, चित्रकूट, हमीरपुर, बाँदा उर महोबा, एवं म.प्र. के सागर, दमोह, टीकमगढ़, छतरपुर, पन्ना, दतिया, निवाडी, जिले के अलावा भिंड जिले की लहार तहसील, ग्वालियर की भांडेर तहसील,रायसेन एवं विदिशा जिले का कछु हैसा सोउ आउत है लेकिन जै सीमाएँ भू-संरचना की दृष्टि से सई नई कई जा सकत है।
जन सूचना अधिकार सन् 2005 से प्राप्त आँकडन के अनुसार बुन्देलखण्ड में डांगन को क्षेत्र दिनोदिन कम होत जा रओ है इतै के छः जिलन की हालत तौ भौत खराब है। कछु जिलन के आंकडे़ हम बानगी के लाने इतै दे रय है। बांदा जिले में ही कुल डांगन कौ क्षेत्र 1.21 प्रतिशत है जबकि राष्ट्रीय वन नीति के अनुसार किसी भी भू भाग में 33 प्रतिशत वन क्षेत्र अनिवार्य रूप से धरो गऔ है। ई जिले में कम होती डांगन के कारण चील,गिद्ध गौरया व तेंदुवा उर कारे हिरन जो कि केवल बुन्देलखण्ड में बांदा, हमीरपुर उर चित्रकूट में मिलत हते वे केवल अब बांदा में भौत कम संख्या में बचे है। चित्रकूट जिले मे 21.8 प्रतिशत डांगन कौ क्षेत्र बचो है इतै पै मिलवें वारी भौत महत्वपूर्व वन औषधियाँ  गुलमार, मरोडफली, कोरैया, मुसली, वन प्याज,सालम पंजा, अर्जुन, हर्रा, बहेडा आँवला उर निर्गुडी है। वर्ष 2009 की गणना के अनुसार इतै पनै कारे व अन्य हिरन 1409 हतै। इतै कौ रानीपुर वन्य जीवन बिहार 263.2283 वर्ग कि.मी. के क्षेत्र में डांग हती। जीकी देखरेख कौ जिम्मा कैमूर वन्य जीव प्रभाव मिर्जापुर की देखरेख में रखौ गओ है।
जनपद महोबा में अब 5.45 प्रतिशत डांग क्षेत्र बचो है उर इतै पै तेंदुआ, भेडिया,बाज विलुप्त होवे की कगार पै हैं इतै पै पाओ जावे वारो कारों हिरन अब विलुप्त हो गओ है। इतै कि वनऔषधि सफेट मूसली,सतावर, ब्राम्ही,डुमार,हरसिंगार,पिपली सोउ विलुप्त होवे की कगार पै है। महोबा समेत सबरै बुन्देलखण्ड में वर्ष 2008-09 में विशेष वृक्षारोपण अभियान कार्यक्रम मनरेगा के तहत दस करोड रूख (वृक्ष) लगाये हते जीमें सें 59.56 लाख रूख पनप गये उर जिदां बचे रय ई वृक्षारोपण में शीशम, कंजी, सिरम, चिलबिल, बांस, सगौना आदि के रूख लगाये हते। इसके संगे झांसी में 70.50 लाख रूख लगावे कौ लक्षय रखौ गओ हतो जीमें से कुल्ल 71.61 लाख रूख लगाये गये हते जी में से 65.755 लाख रूक जिंदा बचे हते। जो कि कुल्ल वृक्षारोपण कौ 91.81 प्रतिशत है। इतै जा बात सोउ सांसी है कै दस करोड रूक भी आकाल उर पानी की लडाई लडने वाले बुन्देलखण्ड में डांगन खौ आबाद नइ कर सकें।
जनपद हमीरपुर में कुल 3.6 प्रतिशत ही डाँंगे बची है हतै पै चिंकारा, चीतल, तेंदुआ, बाज, भेडिया, गिद्ध जैसे जीव विलुप्त होवे की कगार पै है। दुर्लभ जाति कौ कारौ हिरन इतै मौहदा कस्बे के कुनेहटा के डांगन में पाओ जात है जिनकी संख्या मात्र 56 रै गयी है। जनपद जालौन में 5.6 प्रतिशत डांगन कौ क्षत्र बचो है। जनपद झाँसी कौ कुल्ल क्षेत्रफल 5054 वर्ग कि.मी. है अर्थात 5,02,400हेक्टैयर जीमें कुल्ल  6.66 प्रतिशत वन क्षेत्र शेष हैं।
वनाधिकारियों की माने तो इन घटती भई डाँंगन कौ कारण गिरते भए जल स्तर,बढ़त भये तापमान, घटते हुए रूख के संगे-संगे पहाडन कौ अंधाधुंध खनन है। हमाय एंगरे कें वातारण में बन्न-बन्न कै औद्योगिक निर्माण इकाइयाँ,,प्रदूषित जीवन शैली से बढ रय उपकरण व वस्तुओं के प्रयोग से पैदा होवे वारे अपशिष्ट पदार्थ अवयवों के निरंतर घुलने से पारिस्थिकीय तंत्र बुरई तरां सें प्रभावित भओ है। ग्रीन हाउस गैसन कौ निरन्तर उत्सर्जन व तापमान में वृद्धि भविष्य में जनी-मांसन के संगे-संगे वन्य जीवन के अस्तित्व की कठन समस्या के रूप में प्रकट होके जलवायु परिवर्तन कौ एक मात्र कारण बनेगा। वन अधिकारी श्री बंदा नुरूल हुदा का मानना है कै प्राकृतिक छेड़छाड़ से बायोडायवरसिटी (जैविक विविधता) असंतुलित होकर मानव अस्मिता पर प्रश्नवाचक चिन्ह् खड़ा कर देगी। इकौ ताजा तरीन उद्हारण है कै बुन्देलखण्ड कें इन सातों जनपद में परकी साल से ईबार तनां जादा बर्षा भइ पन खेतन में उपज के फलस्वरूप पैदा हुआ अनाज बीज की लागत के अनुरूप न होके भौतई पतरौ उर स्वादहीन हतो एक दौ नई ऐसे सैंकरन किसान ई बात की गवाही देत नजर आ जात है कै कउ न कउ प्रकृति की बनावट से खिलवाड उर वातावरण में मनुष्य का जादां हस्तक्षेप करवौ ई समस्या कौ विकराल रूप धर लओ है। जिकौ स्थाई ठाई समाधान ढूँढ पावो सम्भतः आवे वारी पीढ़ी के लाने अतिशयोक्ति पूर्ण कार्य हुइये।

ओरछा-
बेतबा नदी के करके बसों ओरछा पनी खूबसूरती के कारण भौत प्रसिद्ध है। ईखौं 16वीं सदी में बुंदेला राजपूत प्रमुख रूद्रप्रताप ने बसाओ हतो। इतैं को राम राजा को मंदिर तो जग प्रसिद्ध है ही ओरछा बर्ड सेंचुरी भी देखवे वारन कौं भौत नौनी लगत है। जा बर्ड सेंचुरी सन् 1994 में स्थापित करी गयी थी ई कौ फैलाव 46 वर्गकिलोमीटर तक है और इतै पै बाघ, तेंदुए, लंगूर, जैकल, स्लोथ भालू, नीले बैल,बंदर और मोर आदि जीव रत है। ई बर्ड सेंचुरी में अंदाजन 200 से जादा बन्न-बन्न चिडियों की प्रजाति पाई जात है। प्रवासी पक्षियों किंगफिशर, काले हंस, वुडटरेकर व उल्लू इतै के आकर्षण का केन्द्र है। इतै के रंगबिरंगे पक्षी देखवे वारन खौं एनई भाउत है। ग्दिध की सोउ दुर्लभ प्रजातियाँ ईते पे पाई जात है। 
इतै पै इन दुर्लभ गिद्धन कौ सरंक्षण के लाने सरकार द्वारा कैउ जतन करे जा रय है इनकी गणना करके उनकी बढोत्तरी के लाने प्रयास करे जा रय है। 
इतै की डालगन में साल, सागौन आदि के रूखन की भारी डांग है। इतै की डांगन कौ फायदा उठाकैं कछु भडिया हरे इतै की गैल में अकेले जावे वारन खौ लूट लेत है। बंदरा डागंन के बीच कडी गैल के करके-करके बैठ कै इतै से कडवे वारन से कछु मिलवे की टकटकी लाये रह है इतै से कडवे वारे लोग चना चबेला, केला फल आदि इन बंदरन कौ खाबे खौं डार देत है।
पन्ना:- 
पन्ना हीरा के संगे-संगे बाघ के संरक्षण के लाने भी प्रसिद्ध है। पन्ना नेशलन पार्क बुन्देलखण्ड की घनी डांगन के बीच खजुराहों से 57 किलोमीटर दूर पै अंदाजन 534 स्क्वेयर किमी. के क्षेत्र में फैलो है। पन्ना नेशलन पार्क  में  मुख्य रूप सें बाघ, चैसिंगा हिरण, चिंकारा, सांभर, जंगली बिल्ली, घडियाल, मगरमच्छ, नीलगाय आदि देखवे कौं मिल जात है। इतै की डांगे बाघ के लाने अनुकूल वातारण पैदा करती है ई से इतै पै बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान एवं कान्हा किसली राष्ट्रीय उद्यान से एक-एक बाघिन को पन्ना राष्ट्रीय उद्यान में लाई गयी हती। पन्ना की डांगन में जगंली जानवरन की दिनचर्या को भौतई लिंगा से तको जा सकता है।
ओर भी मुलकन डांगे हमाय बुन्देखण्ड में जागन-तांगन है पै अब डाँगन की घटती भयी जांगा के कारण से जैव विविधता कौ खतरा बनौ भओ है। ई कै लाने हम सबई जनन कौ चेतवे कौ टैम आ गओ है कछु न कछु उपाय जतन करने पडे नई तर एक दिनां हमन खौ भौत पश्चातनें परहे। हमे एक नारा पै अमल करवों अब भौत जरूरी हो गओ है वो है ‘‘ डांगन कौ जिदां रान दो,नदियन कौं कल-कल बउन दो। तभई हम सब चैन सें रै पैहे। 
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  राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
संपादक ‘आकांक्षा’ पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
जिलाध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
पूर्व जिला महामंत्री-अ.भा.बुन्देलखण्ड साहित्य एवं संस्कृति परषिद़्
 शिवनगर कालौनी,टीकमगढ़ (म.प्र.)
  पिनः472001 मोबाइल-9893520965
    E Mail-   ranalidhori@gmail.com
       Blog - rajeevranalidhori.blogspot.com
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2- तूङ्गारण्य-
                 -रामगोपाल रैकवार

डांग खों संस्कृत में अरण्य कत हैं । महाभारत के वन पर्व में दंडकारण्य, नेमिषारण्य और तूङ्गारण्य कौ नाव आऔ है। तूङ्गारण्य खों इन सब में  पैलौ, बड़ौ और मोक्ष दैबेबारौ मानो गऔ है। आजकल ओरछा के लिगाँ जौन डांग है ओइ खों तूङ्गारण्य मानो गऔ है। इतै तुङ्ग ऋषि कौ आश्रम हतो। महाभारत में ईकौ विस्तार सबरे विन्ध्याचल में बताऔ गऔ है।
ऐसौ लगत कै विन्ध्याचल की टौरियन-पहारन की टुनंग (तुङ्ग)
लौं ठाड़ी डांग के कारन ईकौ नाव
तूङ्गारण्य परो हुइयै।
तूङ्गारण्य कौ जिकर कैऊ जागाँ
आऔ है। ओरछा के कवि स्वामी हरिदास कत हैं - ओड़छौ वृन्दावन सौ गाँव। सो थल तूङ्गारण्य बखानो ब्रह्मा वेदन गाऔ। कवि केसवदास लिखत हैं- औरछा के आस-पास, तीस 
कोस केसवदास, तूङ्गारण्य नाम वन बैरी अजीत है। तूङ्गारण्य आजकल ओरछा अभयारण्य के  नाव सें 46  वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैलो है। ई खों सन् 1974 में अभयारण्य बनाऔ हतो। ई में तिन्दुआ , लाल और करिया मौ के बन्दरा , नीलगाय (रोज) छिकरा, हिन्ना, सुगर , लड़ैया, मोर, खरा, गीद, तीतर-बटेर और कैऊ तरा के जई- जनावर मिलत हैं। इयै चार तरा के दुर्लभ गीद पाय जात। इतै सगौना और करदई की घनी डांग है। छेवले, तेंदू, अचार, खैर बगैरा के रूख सोऊ हैं।।एक कुदाऊँ बेतवा तौ दूसरी कुदाऊँ जामनी नदी बैउत है। बेतवा में कवा और जामनी में कठ जामू के पेड़ देखे जा सकत हैं। जामनी नदी के पुल नौ हनुमान जू सिद्द स्थान है। इतै विदेशी जनी-मान्स साइकल पै घूमत फिरत हैं।  कजन की दार  ई पै ध्यान  दऔ जाय तौ जौ अच्छौ पर्यटन स्थल बन सकत है।  तूङ्गारण्य के बारे कैऊ किसा हैं पै लेख भौत  बड़ौ होजै सो उनै अलग सें लिखें ।
                       -रामगोपाल रैकवार टीकमगढ़
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3-  रमन्ना की डांग 
            -सियाराम अहिरवार,
टीकमगढ कौ रमन्ना राजा कौ  रमन्ना आ कुआउत कायसें कै ईमें  टीकमगढ की नकरआई नकैया बीन बे जात ती सो वे कतआउत ती कै आज तौ राजा के नौकर नें सब नकैयां छुडा़ लई ।पैला ई रमन्ना में भाई घनें बडे़ -बडे़ रूख ठाडे़ रत ते राए रुखइयन औ करोंदी ,बेकल के माऐ तौ कोशन गैल नई मिलत ती । औ बडे़ पेड़न की तौ कनइ का है ।इकदम हूका के हनें रत ते ।जिनमें मउवा ,अचार ,आम ,सैस,नीम ,खैर बमूरा औ न जानें कित्तै प्रकार के पेड़ हते ।एई से ई क्षेत्र में भाई पानू बरसत तौ कभऊं सूका नई परत ती औ लकडि़यन के संगे बन्न -बन्न के फल ,अचार ,मउवा ,गुली ,अमियां ,बेर, मकोरा ,करोंदा मिलत ते औ बूढे पुराने आदमी बताउन लगत कै रमन्ना की डांग में पैला भाई जनावर हते ।राजा इतै शिकार खेल वे जात ते ।दुपाई हो जात ती सो राजा अपनें जेठन कौ बनबाव ताल सुधासागर के पेड़न तरे बैठ जात ते ।बताउन लगत कै पैला इतै भाई छिकैयां , खरा ,हरैला सुअर हते ।वे जैसई सुधा बेटी के नाव पै बने ई ताल में पानी पीबे आउतते राजा पट्ट सें उनकी शिकार कर लेत ते । और भी बडे़ -बड़े जनावर हते जिनमें तिंदुआ ,बिगना ,लड़इया ,रीछ ,आदि। औ बन्न -बन्न के तौ गीध ,चील ,उल्लू औ चिरई चुनगुनू हती ।पैला ईमें डाकू सोऊ छिपे रत ते काय से कै ई के भीतर कैऊ नरिया ,नाले बउते औ सुधा सागर ताल हतो सो पानी मिल जात तौ ।
आज ई  की सुरक्षा नई होबे सें पेडे़ कटत जा रये जीसें जौ बीरान  होत जा रव आज न वे बडे़-बडे़ पेडे़ बचे औ न वे जनावर ।
एई सें इतै सूका परन लगी ।आज आदे रमन्ना में लोगन नें कब्जौ कर लव जीपे खेती कर रय औ मकान बनाउत जा रय।
सीलिंग के बाद सुधा सागर सें पपौरा रोड तक कौ रमन्ना राजा के हैंसा में आऔ तो। 1973 में नाती राजा ने 3 लाख में ई डाँग खों काट लै जाबे कौ ठेका दऔ तो।ठेकेदारन नें ऊ टेंम पै 10-15 लाख कमाए हुइयें पै पूरी डाँग नाश हो गई ती। पपौरा रोड के दूसरी तरप कूँड़ादेव तक लों के रमन्ना में खेती होंन लगी ,सो पूरौ रमन्ना मिट गऔ। ओरछा राज में रमन्ना कौ नाव मधुवन धरो गऔ तो। सरकारी रिकॉर्ड में सोऊ जौ मधुवन कहाउत है। बुजुर्ग कन लगत ते कै भगवान राम ने कछू दिन ई डाँग में गुजारे ते,ऐई सें ई कौ नाव रमन्ना प्राचीनकाल सें चलो आ रऔ। 
बढ़िया आलेख । रमन्ना राजन- मराजन के निज की डांग होत ते।  टीकमगढ़ में दो घनी डांग हती। एक बड़ौ रमन्ना दूसरी खैराई
            रमन्ना में राजा शिकार खेलत ते। हमाई उमर के लोगन नै शिकारगा कौ नाव सुनो हुइयै। पुरानी टेरी सें आँगें गोगाबेर के लिगाँ दो सीमेन्ट की कुरसी बनीं ती। ई पै बैठ कें राजा शिकार करत ते। हाँके होत ते। अब जानै हैं कै नईं, सुधासागर सें उर नदी कौ उद्गम मानो जात है। रमन्ना हातियन के खेल सें सोऊ कत ते। रमणीक और आमोद-प्रमोद की जाँगा तो जे हतीईं । रमन्ना अबै सोऊ नाती राजा के अदकार में है।
                       -सियाराम अहिरवार,टीकमगढ 
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4--- ओरछा की डाँग -----
                         -कल्याण दास साहू 'पोषक'

पिरथीपुर सें पुख्य नक्षत्र के दिनाँ 'ओरछाधीस श्री रामराजा जू सरकार ' के दरसनन खों हम चार-पाँच जनन की मिंजौटी तइयार होकें निंगतइ आँगे खो बढी़ । काय कै- पुख्खन मे पैदल चलबौ शुभ मानों जात । निंगत-निंगत चन्दपुरा गाँव के येंगर पौंच गए । इतइं एक राजासाई हवेली बनीं । पैल के जमानें में इतै राजासाब ठैरत हुइयैं । बस ! इतइं सें ओरछा की डाँग दिखाँन लगत 
डाँग की काॅ कनें ! भौत नामी डाँग है । बन्न-बन्न के बिरछन सें इतै की सोभा देखतनइ बनत । सगोना के बिरछन की तौ इतै भरमार है , जा समझौ कै- जा डाँग सगोनामय है । गोलइ-गोला आँगें बढे़ तौ एक घटिया मिलत , इतै अंधी मोड़ है । भौत समरकें निंगने परत । कभउँ-कभउँ इतै दुर्घटना घट जात । 
सगोना की डाँग को सुन्दर नजारो देखत हम औरें आगें बढ़त जारय । तनक आँगें बढे़ तौ जामनीं नदी के ढियाँडे़ं लौं पौंच गए ।समर-समर कें राजासाई पुल पै निंगे । पुल पै जब चार पइया वाहन आ जात तौ भौत डर लगत । जामनी नदिया मे जामुन की डाँग हनी , भौत सुहानों लगत दोई किनारन पै ।
आँगें बढे़ तौ बंदरन के झुंड के झुंड गोला पै हमाव स्वागत करत मिले । अच्छी डाँग हनीं , जी में कैउ प्रकार पशु-पक्षी विचरत मिले ।
तनक और अँगाईं  बढे़ तौ करधइ की डाँग मिली । ऐसी डाँग कै पूँछौ ना । ईके बाद हम औरें बेतवा मइया के ढियाँडे़ं पौंचे । 
सब जनन ने छाँयरे में बैठ कें पैलाँ सुस्ताव ,फिर स्नान-ध्यान करै ,
भौत उम्दा लगौ । सपर-खोर कें रामराजा सरकार के दरबार हाजिरी लगवाई । गजब की भीड़ हती ।
संजा की बिरियाँ वापिस लौट परे । गैल-गैल डाँग की सोभा और बिरछन के महत्व के बारे में बतकाव करत अपनें घरे आ गए ।

    - कल्याणदास साहू " पोषक ",पृथ्वीपुर जिला निवाडी़ (मप्र) ( स्वरचित मौलिक आलेख )
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5-बुन्देलखण्ड में डांग
                -अशोक पटसारिया
          भैया हरौ ओड़छे की डांग की का कानें राजासाई टेम मैं लगाव गव जौ डांग ईकौ ओर छोर नई हतौ चंदपुरा भेलसा सें लग जातई सिंघपुरा लोटना तौ डांगइ में हैं औऱ पेलें सें कयं तौ पीथीपुर सौउ डांग कौ क्वॉत तौ। इतै कच्छु न हतौ ओड़छे में सगौना करधई हूंक कैं हती।जामनी कौ पुल फिर वेतवा कौ
पुल राजा साई टेम के है आज भी इनईं सें काम चल रव।सरकार ने कछु नई बनवा पाव।
सिंघपुरा में एक जगा सिंघपुरा वारे बब्बा जू कौ मंदर है उतै एक सन्त जू विराजत भाई तेज हैं।उतै बिडी तमाखू वारन की मनाई है। और हुसियारी करी सो वर्रें बन्दरा मछों छोड़ देत कैऊ सालन से मई जमे आज भी दर्शन करे जा सकत।तनक अंगाई रोड़ पै बन्दरा अपनी आदत भूल गय हमाई आसा में बैठे रत कै कौनऊ कछु डार देवै।उनकी अगली पीढ़ी तौ उचकबौ तक भूल जै।और जादा जंगली जनावर नईं दिखत सुनी है कै कछु छोड़ दय।जंगल विभाग ने फैंसिंग करवा दई।
पै लोगन के मारें डांग सो खाली हो गय वारें बारें पेड़ दिख रय अंदर तौ निपट गव।
वेतवा कौ वरणन वेद पुरानन में दर्ज है भौतई पवित्र मानी जात।इतै कंचना घाट पै औरतन के पैजना तोड़ा पायलें रेता सें मजत ती सो मनन सोनै चांदी की घिसन मिलत हतीं।एइसें ई घाट कौ नाव कंचना घाट परौ।अब जिते राम राजा सिरकार साक्षात विराजे होंय सो उतै की कल्पना करी जा सकतई।पुराने जमाने में ओड़छा भौत बड़ी रियासत हतीं 36 छोटी रियासतें ईमें आऊत ती।पन्ना विजावर चरखारी टेरौली झांसी राठ पनवारी दतिया सब एई कौ सिक्का चलत तौ गज़ासाई।चांदी के हमुऊँ ने देखे गज़ासाई।राजासाई टेम अच्छौ हतौ ऊ टेम में निर्माण कार्य भौतई उम्दा हते आज भी ठाडे।
अब तौ गांव के गाँव बस गय जंगल कटत जा रय।रैयत ने तनक गुजारे खों मिटाए तौ राजा लोगन नें तौ अमर होवे के लाने निपटाई दय।अब भगवान है।पानू बरस नई रय घाम ऐसौ पर रव के तमारौ आ जै।सावन सूखौ चलौ गव।अब भगवानई कौ भरोसौ बचौ।
हमने वेतवा कौ खूब आनंद लव।कौनऊँ जगा नई बची जिते पिकनिक नई करी होय।योगासन प्रणायाम की बन्न बन्न की फोटो उतरवाई। अब बे दिन कभऊँ नई आवने।सो भैया राम राम पौंच जाय।
            -अशोक पटसारिया नादान लिधौरा, टीकमगढ़
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6-बुंदेलखंड और डांग
                   -डा देवदत्त द्विवेदी
   बुंदेलखंड मैं डांग कौ बडौ महत्त है।काय कै इतै कीं बड़ी बड़ी डांगे आदमी की जिंदगी सें सूदी जरी हैं। अगर बुंदेलखंड खों निहारौ जाय तौ इतै जितने हल्के बड़े तीरथ और धारमिक अस्थान हैं बे सब डांग सें जुरे भय हैं
जैसें जटा शंकर धाम खों देखौ बीच डांग में पहरिया
पै बिराजे हैं। अब हम अपने अगल बगल की चरचा करें
तौ ई असपेर में सोई बड़ी-बड़ी डांगें हैं। एक तरफै घनी डांग में पहार पै जैन तीर्थ द्रोनागिर जी हैं, तौ दूसरी तरफै कोसन दूर लौ फैली डांग में भीमकुन्ड है।अब चाय नैनागिर जी होंय कै पाताल गंगा, अर्जुन कुंड कै कुड़ी धाम होंय सब डांगन डांगन में देखबे मिलत हैं ।
डांग कौ आदमी की जिंदगी मैं भौत बडौ सहजोग है।डांग
के पेड़ पौधन सें हमें जलाउ और इमारती नकरिया मिलता तौ तरा तरा के फल- फूल,जडी बूटीं और पेडन की गाद बगैरा भी मिलत है।
दूसरी तरफै डांग में पसु पंछियन कौ भी पालन पोसन
होता है। डांग के पेड़न सें अच्छी बरसा होत, अच्छी हबा सोइ मिलत है।ई सब बातों सें हम कै सकत हैं कै बुंदेलखंड और डांग कौ भौत सगौ संबंध हैं।
    जै जै बुंदेलखंड
-डॉ देवदत्त द्विवेदी सरस, बड़ा मलहरा छतरपुर
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7-  बाजना/भीम कुँड  की  डाँग 
               -रघुवीर आनंद, टीकमगढ़

छतरपुर  जिले   में एक  गाँव   भीमकुँड/बाजनाहै बाजना  से तनक  दूर भीम कुँ  ड है  पैलँऊ  कुँड   ऐन  घने रूखन  से ढको  रततो शेर तेँदुआ रीझ जँगली  जानवर पानु  पीछे आउत  जाते बाजना  में  एक  नयी  बुँदेलखँड  क्षेत्रीय  ग्रामीण  बैँक   की  शाखा  खुली  हती  मै पैली  बेर बुक मनीजर   बनके  आव आवै  जावै  के  साधन  भौत  कम  हते  हम  फटफटिया  से  आऊत  जाऊत  तू  जँगली  जानवर/डाकूक् क्षेत्र हतो  खूबघनी  डाँगहती  हिरन छोकरा रीझ लडैया  भोत  बन्न  के  जानवर रतते  मोय कभँऊ  कभँऊ   उगाई  मौका  मुवावनो  करवै  सोउ  जाने  परत   हतो  एक दिन  चपरासी खोँ  फटफटिया   सेँ  जसगुँवा /रानीताल गाँवन   को  दौरा  हतो जैसीई मझाँऐ  डाँग   पौचेँ   चपरासी  खोँ तेँदुआ  दिखा  परौ   बोलो  देखो  साब  तेदुँआ  जा  रव  हमाँय  तो  कपकपी छूटी  रूके  तनक  देखन  लगे  फिर  डाँग  में  विला  गव  ऊ  डाँग  में  तेँदू  पत्ता  अचरवा  खैर  महुआ  चिरौंजी  लोगन/सरकार खौँ  भौत  आमदानी  होत  ती  अब  काँ  धरी  रूख  काट  लय   शिकारगाह  बनी  डाँग   सब  खतम  हो गवो   ।
                      -रघुवीर आँनद ,टीकमगढ
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8- बुन्देल खण्ड और डांग
                  -रामेश्वर राय परदेशी,टीकमगढ़
    
            सबसें पैले सबइ भज्जा बैनन खां और पंचन खां रामेश्वर राय परदेशी की राम राम पौचे पैले डॉग न में आम नीम अचार तेंदू सगौना सिसोन छिओलेन के भौत घने रूख  होत ते मऊ अन के गुलिन के धपरा नीम की निबोरी अचार की चिरोंजी और तेंदू बेंच कें घर को गुजारौ
कर लेत  तो आदमी   पै अब तो सबरई  डांगे   काट कें नाश कर दांईं  जेई सें  घनें रुखन की जगां बड्डी अटारी  बन गईं
मऊअन के लटा मुरका  बेल बेर खात ते    हमाई मताई
डुबरी  बनाबू  करी  सो खाबे में  भोत नोनो   लगत तो
          भज्जा हरो परवन के नदियन के करके के तलवन के आदम न  नें घनें  रूख मिटा दये।  एई सें  बसकारो झूट मास को होंन लगोपैले साउन के म इना में चार चार दिनन कीं  झिरें लगत ती अब तो सूका परन लगी ईसें पर आवरन बचा नेतो  रूख लगाउने  
              -रामेश्वर राय परदेशी,टीकमगढ़
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9- डांगे
               - वीरेन्द चंसौरिया
डांग के बारे में हम जादां तौ नईं जानत पर अपने बब्बाहनन से जरूर सुनी कै उतै खूब घने पेड़ होत और केउ तरा के जनावर रत जो अगर अकेले पर गय तौ चीथ डारत । ईसें डांग में अकेले कबहुँ न जाव जाय । कम सें कम तीन चार जनें मिलकें जांय और संगे लट्ठ मट्ठ लय रबें । बब्बा ने बताव हतो की डांग में बिरवाई करबे जार अच्छे मिल जात । ईसें गांव के केउ जनें बैलगाड़ी लैकें जार काटबे डांग में जात और उतै सें कांटे दार जार लैआकेँ खेतन के चारऊ तरफ बिरवाई करत जीसें खेत में ढोर नईं घुस पाउत और फसल कौ उजार नईं होत ।
        - वीरेंद्र चंसौरिया, टीकमगढ़
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10- डांग से भरपूर बुंदेलखंड 
                 -कीर्ति सिंह, भोपाल
बुंदेलखंड डांग संपन्न तो सदा से रहो अब पैले की अपेक्षा कम है लेकन आज भी भरपूर है 
                 बुंदेलखंड में पन्ना  के डांग कोनउ परिचय को मोहताज नईयाँ   भारत में विख्यात तो  हैई  और जगजाहिर है काये से पन्ना में पन्ना नेशनल पार्क है जो पर्यटन को प्रसिद्ध स्थान है 
          पन्ना के डांग में बनस्पतियन के  भंडार है जैसे-सागौन (टेक्‍टोनाग्रांडिस),  महुआ (मधुका इंडिका), अचार , गुंजा- इ गूंजा की लकड़ियां जरती नइया भौत धुआं करती है , करधई, धाओरा , सलई , खैर कैटेचू),  बेल (एजल मारमिलोस) ओई जीको शरबत गरमी में पियो सो पेट बड़ों सही रहत , पलाश (ब्‍यूटिया मोनोस्‍परमा), अर्जुन (टेरमिनालिया अर्जुन) ईकी  छाल की चाय पिये से हॄदय रोग नइ होत ,साजा (टेरमिनालिया टोमेनटोसा), अमलताश (कासिया फिस्‍टुला)      ऑंवला (इंबालिका ओफिसिनालिस) कुल्‍लु आदि 
 और जंगली जानवरन की कितेक प्रजाति  पाई जाती जों में जे सबसे अधक पहचानी भई है जैसे बाघ, तेंदुआ, जंगली बिल्‍ली, भूरी चित्‍तीदार बिल्‍लीया, लकड़बग्‍घा, जंगली कुत्‍ता, भेडि़या, सियार, रीछ, सांभर, चिततीदार हिरन या चीतल, ब्‍ल्‍यू बुल या नीलगाय, चिंकारा, फोरहोर्नड एंडीलोप या चौसंगा, सेही - ओई जोंन के शरीर में कांटे होत शेर लॉ नई लड़त ईसे आदि। पन्ना टाईगर रिजर्व
में बोत दूर दूर से लोग  आत है बाघ देखबे ,अब बाघ ना भी देख पाये पर नील गाय या कौनउ दूसरे जानवर तो जरूर देखबे मिल जात .मतलब के  इते के डांग बुंदेलखंड  के लाने पर्यटन के  नजरिया से बोत महत्वपूर्ण है पन्‍ना टाईगर रिजर्व में सहजता के साथ देखे जाने वाले पक्षियों में है - बगुला या अन्‍धा भोग गुलबदना, फाख्‍ता, मोर, बटेर, तीतर, टुइयां तोता आदि इन डाँक में 200 से ज्‍यादा पक्षियों की शिनाख्‍त करी  जा चुकी है । 
                     मध्य प्रदेश को राज्‍य पक्षी को दर्जा हासिल दूधराज  (पैराडाइज)
           -कीर्ति सिंह, भोपाल
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11- 🌲बुंदेलखंड और डाॅग
        --सीमा श्रीवास्तव'उर्मिल', टीकमगढ़

जीवन में 'ज' सें शुरू हौवे वारे पांच सब्दन कौ भौत महात्म्य है। जै सब्द हैं- जर, जमीन, जंगल,जनावर और जन। वैसें हमाइ मानो तो छठंय सब्द 'जोरू कौ सोइ इनकी बरोवरी कौ महात्म्य होंय चइए।
                 जां तक डाॅगन की बात है सो  ऐसे जंगल डाऺॅग कुआउते जो कुल्ल जांगा में
पसरे रतते। इनमें बन्न-बन्न के बड़े-बड़े रूख ठांड़े रतते।जै इत्ते घने होत हते कै गैल ढूंढें-ढूंढें न मिलतती।  एइ सें इनमें डाकू दुके रतते ।अब भगवान की बनाई धरती सें तो डॉऺगें खतम सीं हो गयीं उनकी जगा बगियां रै गयीं।
                     अकेले अचंभे की बात जा है कै जिन मानसन ने अपने लाभ कैं लाने धरती सें  डॉऺगें मिटा डारी उनइं मानसन ने अपने मन की धरती पै डांगें-डांगें ठांड़ीं कर लयीं। सुवारथ, लोभ, मोह,क्रोध, अहंकार की ऐसीं घनी डाऺॅगें जिनमें अकेले ‌कटीले ठूंठ ठांड़े जो खुद खां छेद रय और संगे दूसरन खां। इन में ऐसे हिरा से गय कै अछे और बुरय में अंतर नइं कर पा रय। जा बात गुनवे की भौतइ जरूरत है कै अगर जमीन, जंगल और जनावर हैं तोइ जर और जन हैं।
             -सीमा श्रीवास्तव'उर्मिल', टीकमगढ़
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