ग़ज़ल-*"रिश्तों में अपनापन हो"*
नहीं किसी से अनवन हो।
संबंधों में अपनापन हो।।
डोर बंधी हो ऐसी पक्की।
रिश्तों में गहरापन हो।।
उसको चाहो तुम ऐसा।
जैसे कि दीवानापन हो।।
सदाचार तुम अपनाओ।
ये ही जीवन दर्शन हो।।
हरदम लेते ही रहते हो।
कुछ देने का भी मन हो।।
स्वच्छ छवि बनाओ ऐसे।
जैसे इक उजला दरपन हो।।
ध्यान करो तुम उस ईश्वर का।
सुंदर मन हो, सुंदर तन हो।।
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© राजीव नामदेव "राना लिधौरी"
संपादक आकांक्षा पत्रिका
अध्यक्ष मप्र लेखक संघ टीकमगढ़
टीकमगढ़ (मप्र)472001
1 टिप्पणी:
Nice gazal
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