प्रकाशन 22-4-2020
कापीराइट-राजीव नामदेव "राना लिधौरी"
राजीव नामदेव "राना लिधौरी"*
अध्यक्ष मप्र लेखक संघ टीकमगढ़
संपादक आकांक्षा पत्रिका
एडमिन जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
शिवनगर कालोनी,टीकमगढ़ (म.प्र.)-472001
मोबाइल -9893520965
गुरीरी बुंदेली ग़ज़ल संग्रह
संपादक - राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
1-राजीव नामदेव "राना लिधौरी"*
*बुंदेली ग़ज़ल- "तुम गुन कछु रय"*
हम बुन कछु रय।
तुम गुन कछु रय।।
हम कै कछु रय।
तुम सुन कछु रय।।
वे गा कछु रय।
जे धुन कछु रय।
जू सर कछु रय।
जू घुन कछु रय।।
लै इन कछु रय।
दै उन कछु रय।।
*'राना'* चुननै।
तुम चुन कछु रय।।
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*राजीव नामदेव "राना लिधौरी"*
अध्यक्ष मप्र लेखक संघ टीकमगढ़
संपादक आकांक्षा पत्रिका
एडमिन जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
शिवनगर कालोनी,टीकमगढ़ (म.प्र.)-472001
मोबाइल -9893520965
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2- रामगोपाल रैकवार
छोटी बातें बड़ी बता रय।
अपनी अपनी अड़ी बता रय।
काँच के गुरियाबारी माला,
सब खों मुतियन लड़ी बता रय।
हाँ जू- हाँ जू की हद हो गई,
गुंदरा घर खों गढ़ी बता रय।
छठवीं दरजा फेल है उनकी,
पै एमे तक पढ़ी बता रय।
फिर रय अपनी पूँच हिलाउत,
वे कुत्तन खों छड़ी बता रय।
मुफत में जीखों खाबे मिल रऔ,
साजी सब्जी सड़ी बता रय।
जीनों उन्ना लत्ता नइयाँ,
बा सोने सें जड़ी बता रय।
मैंने कभऊँ सूगी लौं नइयाँ,
मोइ खों सबरे चढ़ी बता रय।
फेंक मीडिया की का कैनै,
चून घोर कें कड़ी बता रय।
उनखों मैं सीदौ जानत तो,
बेई मोखों तड़ी बता रय।
कोरोना के ऐसे जनबा,
छेवले की जर जड़ी बता रय।
-रामगोपाल रैकवार टीकमगढ़
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3-कल्याण दास साहू " पोषक "
मों-में गुटका दावें भइया ।
कैसें मास्क लगावें भइया ।।
चाय जितै 'वे' पीक बुलकवें ।
रौंथें खूब चबावें भइया ।।
काॅ करबें उनकी नइं सटतइ ।
चौबिस घण्टा खावें भइया ।।
हाट-बजारन में खरयारय ।
सबखों खूब तँगावें भइया ।।
जुग्ग बनाकें बैठे रत हैं ।
हटकौ तौ ! गरयावें भइया ।।
कोरोना के परै पछाँईं ।
उल्टौ उयै डरावें भइया ।।
" पोषक " कस्बा - देहातन में ।
हँसी - मजाक उडा़वें भइया ।।
---- कल्याण दास साहू " पोषक "
पृथ्वीपुर जिला निवाड़ी (म प्र )
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4-डॉ देवदत्त द्विवेदी सरस
🌷 बुंदेली गजल🌷
मन की गांठें छोरौ भैया
जीवन मैं रस घोरौ भैया
अच्छौ बुरव सबइ तौ जानत
कोउ न रै गव भोरौ भैया
जोंन टूट रय हमसें तुमसें
उनखों दिल सें जोरौ भैया
माया मैं उरझे हौ बिरथां
कर रय तोरौ मोरौ भैया
मिलै कहूं परहित कौ मौका
हांथ न उतै सकोरौ भैया
घर कौ भेदी लंका ढाबै
ऊ सें नातौ टोरौ भैया
खुन्स ईरखा के जरवन में
कब लौ हमें कडोरौ भैया
सरस गुरीरीं गजलें पढकें
तारीं खूब बटोरौ भैया
(मौलिक एवं स्वरचित)
डॉ देवदत्त द्विवेदी सरस
बड़ा मलहरा छतरपुर
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5-सियाराम अहिरवार ।
बुन्देली गज़ल।🙏
तुर्रा तानें फिर रव दद्दा ।
भोर होत सें पी लव अद्दा ।
शरम कछु आ रइ नइ इनखां ।
गीलौ पूरौ कर दव गद्दा ।
सबरे भगत फिरत काम खां ।
जौ चलवे में हो गव फद्दा ।
जब सें दारु पियन लगो है ।
बोलचाल सब हो गव भद्दा ।
"पालि" जौ दिन भर सें पी रव ।
आँखन सें है दिख रव मद्दा ।
सियाराम अहिरवार ।
टीकमगढ़ ।
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6- अशोक पटसारिया
😢बुंदेली बिगार😢
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अब तौ दिन में दिख रय तारे।
कड़ गय टैम हते भैया रे।।
*
उठत भुन्सरा मौ धुआऊत् ते।
दिन भर चुगली के बतकारे।।
*
बे अथाई पै करत टिल्लकें।
रोज लेत सबके चटकारे।।
*
कोऊ अगर धोखे सें कड़ गव।
ऊसें कै रय काबे कारे।।
*
कोऊ सें कै दई करौ गोसली।
तैंने काय भुसा नईं डारे।।
*
चार बिगारें रोज लगा दईं।
वोटन खों हा हा दईया रे।।
*
गली मुहल्लन मुखविर पालें।
जुरत शाम खों खबरी सारे।।
*
उनके घर की पौलें चानें।
जो उनके अपने नइयां रे।।
*
फूट डार रय भैयन भैयन।
तिडी बिड़ी कर रय एका रे।।
*
नकल करा कें पास करा दय।
अब गलियन में फिर रय सारे।।
*
ऊ पातर में छेद करत हैं।
जीकें बैठत साँझ सकारे।।
*
बड़े बढ़न की बड़ी कहानी।
चार जनें कर रय टऊका रे।।
*
में नादान भुगत भोगी हौ।
ईसें हाथ जोर रय प्यारे।।
-अशोक पटसारिया
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7-गुलाब सिंह यादव भाऊ लखौरा
बुन्देली गज़ल- छौटौ परबार।
एक की जाँगा तीन, हमें का?
नइं दुख के दिन चीन, हमें का?
अबै जोर लो हना- हना कें,
मिलै न परबे टीन, हमें का?
धरनी नईं पनानै भइज्जा,
हैंसा परजै हीन, हमें का?
जी दिन चूले- चकियाँ बटनै,
होनै धीनक- धीन, हमें का?
'भाऊ' फिरत हौ हाले- फूले,
दिन सुख के लो बीन, हमें का?
-गुलाब सिंह यादव भाऊ लखौरा
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-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
संपादक "गुरीरी" (ग़ज़ल संग्रह)
प्रकाशन - दिनांक 22-7-2020
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